हाथों में गुलाब,कलम,पुस्तक,हल,कुदाली की जगह बंदूक,गोली और बुलडोजर किसने थमा दिया कैसे मनाऊं
मैं ईद?
ईद मुबारक हो।
————————-
मैं भी
मुबारक बाद देना चाहता हूं
ईद की
पर
कैसे मनाऊं
मैं ईद?
किसे और कैसे
गले लगाऊं ?
यत्र तत्र बिखरे समान
बिखरे सामानों से
खेलता मासूम
वस्त्रहीन बच्चा,
धूल मिट्टी में सने
भविष्य को तलाशता।
झोपड़ी की
दरार पड़ी दीवार से
लिपटकर
आंसू बहाती
मां
मुखपर
भीगे आंचल ढांककर
सिसकते हुए
एक बार
उस वस्त्र हीन
भूखे मासूम
लाडले को
निहारती
तो एकबार
बुझे हुए चूल्हों
और
खाली बर्तनों को।।
खोए हुए
बचपन
मासूम मुस्कान,
भूख,आंसुओं
और
मां के गिले आंचल से लिपटकर
कोई कैसे
मना सकता है ईद ?
आखिर
मेरे घर,आंगन और
झोपड़ी से
कौन चुरा लिया है?
किसने छुपा रखा है
मेरे
चांद को ?
चांद
शीतल चांदनी
प्यार,स्नेह ,मिलन,आलिंगन
और
आनंद का प्रतिबिंब है
चौदहवी
या ईद का
चांद
तुम एक ही हो न।
तुममें सम्पूर्ण सृष्टि
समाहित है।
तुम्हारी शीतल मनमोहक
चांदनी से
सम्पूर्ण सृष्टि
आच्छादित/आनंदित है।
फिर इंसान को
इंसान से
किसने जुदा किया?
किसने भेद सिखाया है?
किसने स्वाति की बूंद/
अमृत की धार
में
जहर घोला।।
हाथों में गुलाब
कलम,पुस्तक,
हल, कुदाली की जगह
बंदूक,गोली और
बुलडोजर
किसने थमा दिया ?
चांद
तुम झोपड़ी,महल,वीरान,सुनसान
नगर,शहर या शमशान
हर जगह
शीतलता और प्रकाश से
जीवंतता प्रदान
कर देते हो
सब पर समान
खुशियां बिखेरते हो।।
क्या
अब चांद भी
वातानुकूल कमरों,
आलीशान भवनों,
महलों में कैद हो गया है?
या
संसद के गलियारों में
कहीं खो गया है?
या फिर
सारा देश
जागते जागते सो गया है?
दोस्तों
शायद अब जागते रहना होगा।
चौकस निगाहें
रखनी होगी
वातानुकूल कमरों,
आलीशान महलों से लेकर
संसद के गलियारों तक।
ढूंढना होगा
और
झोपड़ियों तक लाना होगा
चांद को।।
ईद का चांद
कहीं छुप नहीं सकता
महलों या वातानुकूल कमरों में
कैद नहीं हो सकता
वह
एक दिन
हर घर आंगन में उगेगा
हर पल ,हर क्षण दिखेगा
और
हर झोपड़ी के
किलकारी होगी,
बच्चों में मुस्कान ,
मां का आंचल
खुशियों से
लहराता होगा,
हर इन्सान
इंसानियत का संदेश ले
एक दूसरे से गले मिलता
हंसता,मुस्कुराता और
खिलखिलाता होगा।
ईद मुबारक हो।।
************************
गणेश कछवाहा
काशीधाम
रायगढ़ छत्तीसगढ़
9425572284
gp.kachhwaha@gmail.com