आकांक्षा मिश्रा की कविता

पिछले दिनों


 

 

पिछले 

दिनों से चल रही 

हर मोड़ पर एक ही बात 

अब हमारी रोजी ,ऑनलाइन हो रहीं 

कैशलेस हमारी समझ से परे

क्योंकि ,हुए मजदूर वर्ग के 

हमे तो रोटी और हिंदी की क्षेत्रीय भाषाएँ ही आती हैं 

अब दोनों पर संकट खड़ी हैं 

सवाल उठता हैं 

पेट का 

इसे भरना ही है ऑनलाइन ही 

मुद्दा संसद में उठेगा ,पता नही 

हर वक्त रोटी की फ़िक्र

संसद में रोटी और रोजी 

 

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आकांक्षा मिश्रा


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